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ভাটিয়ালি | টইপত্তর | বুলবুলভাজা | হরিদাস পাল | খেরোর খাতা | বই
  • ভাটিয়ালি

  • এ হল কথা চালাচালির পাতা। খোলামেলা আড্ডা দিন। ঝপাঝপ লিখুন। অন্যের পোস্টের টপাটপ উত্তর দিন। এই পাতার কোনো বিষয়বস্তু নেই। যে যা খুশি লেখেন, লিখেই চলেন। ইয়ার্কি মারেন, গম্ভীর কথা বলেন, তর্ক করেন, ফাটিয়ে হাসেন, কেঁদে ভাসান, এমনকি রেগে পাতা ছেড়ে চলেও যান।
    যা খুশি লিখবেন। লিখবেন এবং পোস্ট করবেন৷ তৎক্ষণাৎ তা উঠে যাবে এই পাতায়। এখানে এডিটিং এর রক্তচক্ষু নেই, সেন্সরশিপের ঝামেলা নেই৷ এখানে কোনো ভান নেই, সাজিয়ে গুছিয়ে লেখা তৈরি করার কোনো ঝকমারি নেই। সাজানো বাগান নয়, ফুল ফল ও বুনো আগাছায় ভরে থাকা এক নিজস্ব চারণভূমি। এই হল আমাদের অনলাইন কমিউনিটি ঠেক। আপনিও জমে যান। বাংলা লেখা দেখবেন জলের মতো সোজা। আসুন, গড়ে তুলি এক আড়ালহীন কমিউনিটি।
  • গুরুভার আমার গুরু গুরুতে নতুন? বন্ধুদের জানান
  • মতামত দিন
  • বিষয়বস্তু*:
  • যোষিতা | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৭:৫৩512193
  • আচ্ছা, এটা আগের কবিতাটার উর্দুতে অনুবাদ।
  • Malay Roychoudhury | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৭:৪৯512192
  • اتکل کے چنمے دانوں کے انداز میں رقص کرتے تھے۔
    جب میں جوتے پہن کر بازار جاتا ہوں تو ننگے پاؤں اپنے پاس لوٹتا ہوں۔
    برتن دھونے کی آواز سے کنسپیٹل کا کچن چونکا
    سمجھ میں نہیں آتا کہ پاپا وہ گانا اپنے گلے میں کیوں رکھتا ہے۔
    میں زمین پر ارشولا کی تعزیت کی سرگوشیاں سن سکتا تھا۔
    .
    آئینے نے بہت پہلے بڑھاپے کی پیش گوئی کر دی تھی۔
    میں پانڈووں کی کلاشنکوفیں کندھوں پر لے کر باہر جانا پسند کروں گا۔
    لیکن کون جانتا تھا کہ مٹھی کی لڑائی آدھی رات کو پاگل ہو جائے گی۔
    .
    پہلے بوسے کی یاد کو تازہ کرنے کے لیے بوڑھا آدمی اب انتہائی نگہداشت میں ہے۔
    اس کی وجہ یہ ہے کہ آپ اپنی غلطیوں کا احترام نہیں کرتے
    شراب پینے اور گٹر میں لیٹنے کی تمنا پوری نہ ہوئی۔
    سمندر لامتناہی چھلانگ لگا کر خود مختار ہونا چاہتا ہے، لیکن ایسا نہیں ہو سکتا
    .
    گھر طوفان سے لڑ رہا ہے لیکن اندر بیٹھا آدمی سمجھتا ہے کہ وہ لڑ رہا ہے۔
    جواب کیا ہے؟ جواب سوال ہے! سوال کیا ہے؟ سوال جواب ہے!
    .
    مور اتنے پروں کے رنگوں اور رقص کے ساتھ نہیں اڑتے
    ذرا اسے دیکھو اور اس کی تعریف کرو۔ وہ ہیرو ہے۔
     
  • Malay Roychoudhury | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৭:৪৬512191
  • হিরো
    আটাকলের চনমনে গমদানার কায়দায় নাচতে-নাচতে
    জুতোপায়ে বাজারে গিয়ে যখন খালি পায়ে নিজের মধ্যে ফিরি
    বাসন-ধোয়া আওয়াজে চমকে ওঠে কাঁসাপেতলের রান্নাবাড়ি
    বুঝতে পারি না অতো গান কেন ওইটুকু গলায় ধরে রাখে পাপিয়া
    মাটিতে কান পেতে শুনতে পাই আরশোলাদের শোকপ্রস্তাবের ফিসফিস
    .
    বয়স হবার পূর্বাভাস আয়না তো অনেক আগেই দিয়েছিল
    আমিই বরং ভেবেছি কাঁধে পাণ্ডবদের কালাশনিকভ নিয়ে বেরিয়ে পড়ব
    কিন্তু মাঝরাতে হাতের মুঠো যে উন্মাদ হয়ে যাবে তা কে জানতো
    .
    প্রথম চুমুর স্মৃতি রোমন্হন করতে যে বৃদ্ধ এখন ইনটেনসিভ কেয়ারে
    নিজের ভুলগুলোকে সন্মান জানানো হয়ে ওঠেনি বলে
    মদ খেয়ে নর্দমায় পড়ে থাকার উচ্চাকাঙ্খা পূরণ হল না
    সমুদ্র তো অবিরাম ঝাঁপাই ঝুড়ে স্বাধীন হতে চায় তবু পারে না
    .
    ঝড়ের সঙ্গে লড়ছে বাড়িটা অথচ ভেতরে বসে লোকটা ভাবছে ওইই লড়ছে
    উত্তরটা কী ? উত্তরটাই তো প্রশ্ন ! প্রশ্নটা কী ? প্রশ্নটাই তো উত্তর !
    .
    অতো বেশি পালক রঙ রূপ নাচ নিয়ে ময়ূর ওড়ে না
    ওকে কেবল দেখুন আর প্রশংসা করুন ; ও-ই তো নায়ক

     
  • dc | 2401:4900:265a:47fa:cc79:eb71:9139:9376 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৭:৩৭512190
  • আজ একটা গরু দেখলাম, সেটা যে কি বড়ো কি বলবো! প্রকান্ড গরু একেবারে। গারু নাকি ষাঁড় কে জানে! তবে মনে  হলো, বেশ কদিন হয়ে গেল, ভালো স্টেক খাওয়া হয়নি।  
  • S | 185.228.137.72 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৭:২২512189
  • ঐ কবতের একটা টইতে একজন সাঁকোটা নাড়িয়েছে। বলেছে সব কাব্যি ভাটে পোস্ট করতে।
  • যোষিতা | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৬:৫১512188
  • এখন কেমন মজা?
    আমি একটু আধটু রাশিয়ান লিখে কানমলা, চড়, চিমটি, কিল, কত কীই না খেয়েছি।
    হিংসে, হিংসে।
     
    মলয়বাবু,
    আপনি হিন্দিতে চালিয়ে যান।
  • প্যালারাম | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৬:৪৪512187
  • @স্কিপ, 
    ঠিক, হিন্দি ছাড়া আর কিছুতেই কিছু করে না। laugh
    স্কিপই করি। আসলে, দেখতেই পাই নে। এটাও তা-ই হতো। কে জানে কেন, মন ভালো-টালো আছে বলেই হয়তো, বেমক্কা এসে বকে গেলাম। 
    টাটা।
  • ছিজাত | 94.230.208.148 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৫:৩৮512186
  • কবি হার্জেন্টিনাকে নিয়ে চতুর্দশপদী নামালেন নাকি?
  • S | 2405:8100:8000:5ca1::f7:768 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৪:৩৯512185
  • কুন্ডু | 2402:3a80:1964:37b3:378:5634:1232:5476 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৪:৩৬512184
  • হা, হা।
    গান ধরেছে হাড়িচাঁচায়-
    কুন্ডু মশায় মুন্ডু নাচায়।
  • avi | 2409:4061:2bbf:a48a:cfc1:eeae:5d1:5619 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৪:১৮512183
  • আর্জেন্টিনা পরাজয় পরবর্তী সামাজিক মাধ্যমের কবিদের দ্বিপদী থেকে চতুর্দশপদী কাব্যের স্ফুরণ দেখছি। একটাই হতাশা, এত বিস্তৃত শব্দভাণ্ডার থাকলেও সৌদির সঙ্গে মেলাতে কেউই বৌদি ছাড়া আর কোনো শব্দ আনার চেষ্টা করছেন না। মহেশবাবুর কুণ্ডু মুণ্ডু ফেনোমেনন।
  • স্কিপ | 2402:3a80:1964:37b3:378:5634:1232:5476 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৩:৪৩512182
  • প্যালারাম বড়ো বড়ো ইংরেজি লিংক আর কপি পেস্ট থাকলে গা চিড় বিড় করে না কি একটু কম করে? স্কিপ করে গেলেই হয়।
  • প্যালারাম | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৩:৩০512181
  • আম্মো দেবনাগরি দেখে একটু ব্যোমকে গিয়েই ভাট খুললাম। বোধহয় ব্যোমকে দেওয়াটাই লক্ষ্য ছিল।
    বাংলা সাইটে হিন্দি দেখলে ভাতের পাতে চুলের মতো গা চিড়বিড় করে। frown
  • হ্যাঁ | 185.100.85.22 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৩:২৮512180
  • সৈকতবাবু এটার নিন্দাপ্রস্তাব আনবেন না?
  • | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৩:২৪512179
  • *বর্ণমালা
  • | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১৩:১৯512178
  • এটা বাংলা সাইট। হিন্দি বোর্ণমালায় লেখার জন্য হিন্দি সাইট আছে বাজারে। গুরুতে হিন্দি  স্কৃপ্ট দেখতে অতি বিশ্রি লাগল। জঘন্য উইত আ ক্যাপিটাল জেড। 
  • Malay Roychoudhury | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১১:৫৩512177
    1. नमक और नमकहराम

    अपनी जीभ से छुआ था, 
    मेरे जिस्म को तुमने
    अवंतिका, और कहा था – 

    "आह, लावणी सौंदर्य,
    दिलों के दिल.. 

    मर्दानगी की खुशबू..."

    उस दिन, 

    पुलिसिया हिरासत से 
    अदालत की ओर
    कमर में बंधी थी रस्सी, 

    और हथकड़ी में हाथ
    उपद्रवी हत्यारों के मध्य, 

    चल रहा था मैं;
    तमाशा देखती भीड़, 

    सड़क के दोनों तरफ।

    उन विश्वासघाती जनों, 

    जिन्होंने स्वेच्छा से
    अदालत में दी शहादत, मेरे खिलाफ, 

    ने कहा,
    कटघरे में खड़े होकर – 

    "ना जी!
    मीठा था वो पसीना, 

    ना कि नमकीन;
    फिर नमकहरामी 

    का तो सवाल ही नहीं -
    हमें नमकहराम ना बुलाया जाए।"

    अनुवाद - नून ओ नीमकहरामी (मलय रॉय चौधरी)
    कोलकाता - 2005


    शमशान (1992)

    एक दोपहर, 
    धान की भूसी उड़ने के मध्य
    एक मृत उल्लू के शव से उड़ते पिस्सू-शावक
    चुरा रहे थे वसा।

    उनके हाथों में, 

    मूढ़ी की भीनी-सी खुशबू
    आक के फूलों के, 

    रुंधे गले से निकली चीखें, 
    धीमे से उठाकर
    जैसलमेर की भंगुर,  

    मंद बयार में
    पर-पीड़नशील सुख!

    सर्पीले शहर में, 

    रक्त-रंजित दीवार घड़ी की बड़ी सुई
    और आग की दप्त रोशनी में 

    मुस्कुराते इंसानी चेहरे।
    फड़फड़ाते कबूतर, 

    फटे दस्तावेजों की-सी आवाज में, 
    थोड़ी सी
    जीते हुए अपनी ज़िंदगी।

    सूर्यास्त के रंग सी दीप्त भौहें,
    सवार, ज्वार के दौरान, 

    एक मनहूस नौका पर
    रूखे लेवनी में लिपटा शव।
    बढ़ा मैं, 

    स्वर्णिम नद-मुख की ओर
    हथेली में पकड़े हुए, 

    एक क्षणिक चक्रवात की एक गांठ।
    फेंके हुए धान के लावों का 

    छाती पीटता रुदन -
    सिर्फ वही मेरा था।

     
    1. एक अर्ध सरकारी प्रतिवेदन

    शस्त्रहीन सेना की प्रार्थना
    चुल्लू भर पानी का मोल – 

    10 रुपए।

    भूमिगत जल राशि का 

    उद्गम-स्थल से विच्छेद
    आदतन ईर्ष्या मिश्रित घृणा
    कठोर शब्दों द्वारा सीमा पर प्रतिबंध
    लोक निर्माण विभाग का पतन।

    टमाटर के खेत में, 

    हाथ में लेकर डाकबद्घ मत
    पड़ा है, 

    मौलिक मंथर मनुष्य, 
    अंतहीन अपेक्षा में,
    संसद के लिए महत्वाकांक्षी जूते
    कहने दो उन्हें, कुछ भी – 

    खाओ धोखे!

    हुंह, 

    जैसे धान के खेत डरते हों, 
    शेर की दहाड़ से
    कृषक-कन्या आज मंत्रालय में बैठी है।

    फुटबॉल के मैदान के

    कोने में लगी,
    एक सीधी चोट से हुई
    पुत्र की मृत्यु पर, 

    शोकाकुल है – 
    एक थका, डरपोक इंसान।

    स्वतंत्रता संग्राम की 

    समस्या का हल
    अंकित है – 

    मृतक के माथे पर – 
    एक अकाट्य सत्य!

    (एकटी अधा-सोरकारी प्रोतिवेदन - 1996)

     
    1. ध्रुपद धोखेबाज
    ध्रुपद धोखेबाज! 
    उतर आओ पालकी से!
    गुलामी छोड़ दी है मैंने
    एक उबाल उमड़ रहा है, 

    जिस्म में
    कमर से गर्दन तक।

    यह कोई मुफ़्त लंगर नहीं,
    जहां चीनी थाल लिए, करो तुम
    अपनी बारी का इंतज़ार।

    ओ अनछुए धन! 

    आओ लिए अपनी 
    साबुत मादकता
    बेरोजगारों के मध्य, 

    सब्जपोश तितली की तरह;
    पैराशूट से झूलती घंटियों का शोर, और
    आरक्षियों द्वारा नज़रबंद, 

    और मेरे पत्रों का दोषान्वेषण।

    स्वार्गिक स्वामी - बेड़ियों में कब तक?
    उठ खड़ा होऊंगा, चारों पैरों पर, और
    तोड़ दूंगा तुम्हारी गर्दन
    चढ़, मक्के के ढेर पर, लहराऊंगा
    अपने मेंहदी-सन केश, भूसे के मंच से, ओह,
    ध्रुपद धोखेबाज! आ जाओ खुद से
    वर्ना तुझे दिखाऊंगा मैं - नर्क - द्वार!

     
    1. प्रचण्ड विद्युतीय काष्ठकार
    ओह, मैं मर जाऊंगा, मर जाऊंगा, मर जाऊंगा।
    दग्ध उन्माद से तड़प रहा, ये मेरा जिस्म
    क्या करूं, कहां जाऊं, जानता नहीं; ओह, थक गया हूं मैं।
    सारी कलाओं के पुष्ठ पर लात मार, चला जाऊंगा, शुभा! 
    शुभा - जाने दो मुझे, और छुपा लो, अपने आंचल से ढंके वक्ष में।
    काली - विनष्ट, केसरिया पर्दों के खुले साए में
    आखिरी लंगर भी छोड़ रहा है मेरा साथ, सारे लंगर तो उठा लिए थे मैंने!
    अब और नहीं लड़ पाऊंगा, लाखों कांच के टुकड़े प्रांतष्थ में चुभते हुए
    जानता हूं, शुभा, अपनी कोख फैलाओ, समेट लो - शांति दो मुझे।
    मेरी हर नब्ज़, एक उद्दत्त रुदन का गुबार, ले जा रही है हृदय तक
    अनंत वेदना से संक्रमित - मस्तिष्क प्रस्तर सड़ रहा है!
    क्यूं नहीं तुमने मुझे जन्म दिया, एक कंकाल के रूप में?
    चला जाता मैं दो अरब प्रकाश वर्ष दूर - और नतमस्तक हो जाता खुदा के समक्ष
    पर, कुछ भी अच्छा नहीं लगता, कुछ भी नहीं।
    उबकाई आती है, एक से अधिक चुम्बन से।
    भूल जाता हूं, कई बार मैं 
    बलात् संभोग के वक्त, सामने पड़ी स्त्री को
    और लौट आता हूं अपनी काल्पनिक
    दिवाकर समवर्णी - तप्त वस्ती में।
    नहीं पता मुझे, ये क्या है, पर ये मेरे अंतर्मन में हो रहा है!
    नष्ट कर दूंगा सब कुछ, चकनाचूर कर डालूंगा
    बुलाऊंगा, और अपनी वासना से उद्धत्त कर दूंगा शुभा को।
    आवश्यक है - शुभा का परित्याग
    ओह मलय!
    कलकत्ता, मानों घृणित - पिल्पिले रक्त - रंजित - फिसलाऊ
    मानवीय अंगों का जुलूस बन चुका है।
    पर खुद का क्या करूंगा, पता नहीं मुझे
    क्षीण होती जा रही है मेरी स्मृति
    मृत्यु की ओर अकेला ही जाने दो मुझे।
    ना मुझे संभोग सीखना पड़ा, ना ही मौत
    ना ही सीखना पड़ा, मूत्र के पश्चात, शिश्न से आखिरी टपकती बूंद को 
    झाड़ने की जिम्मेदारी
    ना ही सीखना पड़ा - अंधेरे में शुभा के पास जाकर लेटना
    ना फारसी चमड़े का इस्तेमाल - 
    नंदिता के वक्ष पर लेटने के दौरान।
    जबकि मैं चाहता था आलिया-सी स्वस्थ आत्मा
    ताजी चीनी गुलाब-सी कोख
    फिर भी अधीन हो गया मैं - अपने मस्तिष्क के विचार  - प्लावन में
    समझ नहीं पा रहा, क्यूं फिर भी मौजूद है मेरी जिजीविषा!
    सोचता हूं, अपने एईयाश, सवर्ण, चौधुरी खानदान के पूर्वजों के बारे में
    मुझे कुछ नया और अलग करना चाहिए।
    सोने दो मुझे, एक आखिरी बार,
    शुभा के स्तनों से, नर्म बिस्तर पर,
    याद आ रही है मुझे, वो तेज चमकार, मेरे जन्म के क्षण की।
    देखना चाहता हूं, मैं अपनी मौत को, खुद - मारने से पहले
    दुनिया को कुछ लेना - देना नहीं है, मलय रॉय चौधरी से।
    शुभा, सोने दो मुझे थोड़ी देर
    अपने हिंसक चंदीले गर्भाशय की आगोश में।
    शांति दो मुझे, शुभा, मुझे शांति पाने दो।
    मेरे पापी अस्थि पिंजर को धुल जाने दो, अपनी माहवारी के रक्त स्राव में।
    तुम्हारी कोख में मुझे बना लेने दो, खुद को, अपने ही वीर्य से।
    क्या में ऐसा ही होता, अगर कोई और होते मेरे वालिदैन?
    क्या मलय,उर्फ मैं, संभव था, किसी और वीर्य की बूंद से?
    क्या में मलय ही होता, मेरे पिता की किसी रखैल के गर्भ में?
    क्या मैंने, शुभा के बिना, खुद को
    अपने मृत भाई की भांति, एक पेशेवर सज्जन बनाया होता?
    ओह, जवाब दो, कोई तो जवाब दो!
    शुभा, आह शुभा
    तुम्हारी झीनी कौमार्य के पार, देखने दो मुझे संसार को
    आ जाओ, इस हरे बिस्तर पर
    जैसे चुंबक सी प्रबल शक्ति से, खिंच जाती हैं धनाऋण किरणे।
    याद आया मुझे, 1956 के अदालती फैसले का वो खत
    तुम्हारी भगन-शिश्निका के आस पास 
    मक्कारी की मालिश हो रही थी।
    तुम्हारे स्तनों में दुग्ध धाराएं बनने लगीं थीं
    मूर्ख यौन संबंध, जो बदल गया था, गर्भ में, 
    लापरवाही से।
    आआआआआआ आह
    नहीं जानता मैं, कि में मरूंगा या नहीं,
    अधीर हृदय की थकान के साथ - फिजूखर्ची उफान पर थी।
    मैं नष्ट-भ्रष्ट कर दूंगा
    कला को समर्पित - सब कुछ टुकड़े टुकड़े कर दूंगा
    कोई और राह नहीं, कवित्त से - अपघात के सिवा!
    शुभा
    अपनी स्मरणातीत, असंयम योनि में आने दो मुझे
    शोक-हीन प्रयत्न के बेतुकेपन में
    मदांध हृदय के सुनहरे पर्णहरिमा में!
    क्यों ना मैं खो गया, अपनी मां की मूत्र नली में ही?
    क्यूं नहीं मैं बह गया, अपने पिता के मूत्र में, हस्त मैथुन के पश्चात।
    क्यूं ना मैं दिंब प्रवाह में मिल गया, या फिर मुख़ श्लेष्मा में?
    उसकी बंद लापरवाह आंखें, मेरे नीचे
    भयावह व्यथित होता हूं मैं, जब छीजते देखता हूं, आराम को,
    शुभा
    एक अबला रूप दिखाकर भी, स्त्रियां हो सकती हैं - भीषण कपटी
    आज, ऐसा प्रतीत होता है, कि स्त्री जैसा विश्वासघाती कोई नहीं, और
    मेरा भयातीत हृदय, दौड़ रहा है, एक असंभव मृत्य की ओर
    फूटी धरती से निकल, चक्रित जल धाराएं मेरी गर्दन तक आ रही 
    मर जाऊंगा मैं
    ओह, क्या हो रहा मेरे अंतः में?
    अपने ही हाथ और हथेली को हिला सकने में असक्षम
    मेरे पजामे पर चिपके सूखे वीर्य,
    से निकल पड़े हैं, अपने पर फैलाए
    तीन लाख बच्चे - शुभा के वक्ष स्थल की तरफ
    मेरे रुधिर से लाखों सुइयां अब कावित्त की तरफ भागती हुई
    ज़िद्दी पैर मेरे, अब उतारू हैं - एक निषिद्ध छलांग लगाने को
    मृत्यु घातक संभोग राशि में उलझ, शब्दों के सम्मोहक साम्राज्य में
    हिंसक आइनों को कमरे की हर दीवार पर लटका हुआ, मैं देख रहा हूं
    कुछ नंगे मलय को खुला छोड़ते ही, उसका असंगठित संघर्ष!

    अस्तित्व (1985)

    सन्न- आधी रात को दरवाजे पर दस्तक.
    बदलना है तुम्हे, एक विचाराधीन कैदी को.
    क्या मैं कमीज़ पहन लूँ? कुछ कौर खा लूँ?
    या छत के रास्ते निकल जाऊँ?
    टूटते हैं दरवाजे के पल्ले, और झड़ती हैं पलस्तर की चिपड़ियाँ;
    नकाबपोश आते हैं अंदर और सवालों की झड़ियाँ-
    "नाम क्या है, उस भेंगे का
    कहाँ छुपा है वो?
    जल्दी बताओ हमें, वर्ना हमारे साथ आओ!"
    भयाक्रांत गले से कहता हूँ मैं: "मालिक,
    कल सूर्योदय के वक्त,
    उसे भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला".

    अस्तित्व(१९८५)


    प्रस्तुति

    कौन कहता है कि बर्बाद हूँ मैं ?
    बस यूँ, कि विष-दन्त नख-हीन हूँ?
    क्या अपरिहार्यता है उनकी ?
    कैसे भूल गए वो खन्जर?
    उदर में मूठ तक घुसा हुआ?
    बकरे के मुँह में इलायची की हरी पत्तियाँ,
    वे सब घटनाएँ ? घृणा-कला, क्रोध-कला, युद्ध-कला !
    बन्धक युवती सन्थाल;
    फ़टे फ़ेफ़ड़ों से सुर्ख, खुखरी की चमकती बेचैनी ?
    वो सब?
    हृदय के खून से लथपथ, खिंचे हुए गर्वान्वित चाकू?
    गीतहीन हूँ मैं, संगीतहीन- सिर्फ़ चीत्कारें
    जितना खोल सकता हूँ मुख-
    निर्वाक वन की भेषज़ सुगन्ध;
    हरम - सन्यास या अंध-कोठरी.
    मैंने कभी नहीं कहा, "जिव्हा दो, जिव्हा
    वापस लो कराहें!
    दाँत भींचे हुए, सहनशक्ति, वापस लो!"
    निर्भय बारुद कहेगा: "एक मात्र शिक्षा है मूर्खता".
    हाथ-हीन, अपंग
    दांतो में खन्जर दबाए, कूद पड़ा हूँ, जुए कि बिसात पर.
    घेर लो मुझे, चारों ओर से
    चले आओ, जो जहाँ हो, नौकरीशुदा शिकारी के जूते में-
    जरासन्ध के लिंग, जिस तरह विभाजित
    हीरों की झुलसती आभा
    हाथ पैर चलाने के अलावा और कोई ज्ञान, बचा नहीं जगत में
    सेब के जिस्म की तरह मोम-मखमली नाज़ुक स्नेह
    समागम से पहले पँख खोल कर रख देगी चींटी.
    खम ठोंक कर मैं भी ललकारता हूँ ये विकल्प---
    दुनिया को खाली करो! निकलो, निकल जाओ सर्वशक्तिमान!
    बंदर के खुजाने वाले चार हाथों में
    शन्ख-चक्र-गदा-पद्म:
    अपने ही पसीने के नमक में लवण- विद्रोह हो
    बारुद धाग के साथ धमाके की ओर, चलता रहे चिंगारी
    वाक फ़सल के दुकानदारों, चले आओ!
    शरीर में अन्धकार लीप-पोत कर
    पिल्लों के झगड़े से गुलज़ार रातों में
    कीटनाशक से झुलसे-अधमरे फ़तिंगों के दोपहरों में,
    जमीनी ज्ञान से फ़िसलते केंचुए, ऊपर आओ-
    खन्जर के लावण्य को फ़िर से इस इलाके में वापस लाया हूँ मैं.


    मोटर-बाईक

    मोटर-बाईक येज़्डी-य़ामाहा पर हूँ मैं
    जब फ़लक की चुनौती और रेत की आँधी के मध्य
    खूबसूरत, सजावटी गुबार-से, मेरे पैरों के निकट फ़टते हैं;
    बिना हेल्मेट के
    और अस्सी की रफ़्तार में हवा को चीरता,
    मध्य-ग्रीष्म की चाँदनी तले
    खोती हुई सुदूर ध्वनियाँ
    तेज़-चाल लौरियाँ पलक झपकते गायब
    सोचने के वक्त से महरुम; पर हाँ
    अपघात किसी भी समय संभावित,
    भंगार में बदल जाऊँगा; सूखाग्रस्त खेत में ढेर..
    (’मोटर-बाईक)


    मानव-शास्त्र

    मैं लुटने को तैयार हूँ, 
    आओ, ओ घातक चमगादड़ !
    फ़ाड़ दो मेरे कपड़े,

    उड़ा दो मेरे घर की दीवारें
    बन्दूक चलाओ मेरी कनपटी पर 

    और मुझे कारा में पीटो.
    फ़ेंक दो मुझे चलती ट्रेन से: 

    बंधक रखो और नज़र रखो मुझपे;
    मैं एक भू-गर्भीय यंत्र हूँ, 

    परमाणु युद्ध की झलक देखने को जीवित
    एक अधर्मी खच्चरी का 

    नीले-लिंगी अश्व द्वारा गर्भाधान..
    (’प्रौत्योघात)


    दुविधा 

    घेर लिया मुझे, 
    वापसी के वक्त. 
    छह या सात होंगे वे. 
    सभी हथियारबंद. 
    जाते हुए ही लगा था मुझे
    कुछ बुरा होने को है. 
    खुद को मानसिक तौर पर
    तैयार किया मैंने, 
    कि पहला हमला 
    मैं नहीं करूँगा.
    एक लुटेरे ने 
    आस्तीन पकड कर कहा: 
    लडकी चाहिए क्या?
    मामा! चाल छोड कर यहाँ कैसे?
    खुद को शांत रखने कि कोशिश मे 
    भींचे हुए दाँत. 
    ठीक उसी पल 
    ठुड्डी पर एक तेज़ प्रहार
    और महसूस किया मैंने, 
    गर्म, रक्तिम, झाग का प्रवाह.
    एक झटका सा लगा, 
    और बैठ गया मैं - गश खाकर.
    एक खंजर की चमक; 
    हैलोजन की तेज़ रोशनी का परावर्तन
    और एक फ़लक पर राम, 
    और दूसरी पर काली के चिन्ह.
    तुरन्त छँट गयी भीड. 
    ईश्वरीय सत्ता की शक्ति
    शायद कोई नहीं जान सकता. 
    जिन्नातों की-सी व्यवहारिकता:
    मानव-मन की दुविधा- 
    प्रेम से प्रेम नहीं कर सकता.
    वे छह-सात लोग, 
    घेर रखा था जिन्होने मुझे;
    रहस्यमयिता से गायब हो गये.
    ( दोतन – १९८६)
    1. बदला मनुष्य

    खतित; धर्म-च्युत:
    और ज़िहाद को मुखातिब.
    राजश्री-हीन, एक सम्राट
    पतित स्त्रियाँ- हरमगामी.
    नादिर शाह से तालीमशुदा
    तलवार को चूम, जंग को तैयार
    हवा पर सवार घोडी;
    मशालयुक्त मैं घुडसवार.
    टूटे-बिखरे जंगी शामियानों की तरफ़
    बढता हुआ मैं.
    धू-धू जलते नगर
    के दरमियान;
    एक नंगा पुजारी-
    शिवलिंग के साथ
    फ़रार.

    पलटा मानुश (1985)

    रक्त-गीत
    अवन्तिका! छापा पड़ा था, मेरे घर में, आधी रात को, तुम्हे ढूंढते हुए
    इसकी तरह नहीं, ना ही उसकी तरह, और उनकी तरह तो बिल्कुल भी नहीं
    तुलना-हीन: इसकी, उसकी या किसी से भी
    क्या किया है मैंने, कावित्त के लिए, धधकते, लावा उगलते ज्वालामुखी में प्रवेश करके?
    क्या हैं ये? क्या हैं ये? घर की तलाशी का परिणाम
    कावित्त का? नशेमन भूरे बच्चे, पिता की टूटी अल्मारी से
    कावित्त का! पुराने बुँदिले बक्से को फ़ाड़कर निकली हुई माँ की बनारसी साड़ीयाँ
    कावित्त का! साँसें दर्ज़ हैं, जब्ती-सूची में
    कावित्त का? दिखाओ, दिखाओ मुझे, और क्या क्या निकल आ रहा है?
    कावित्त का! शर्म करो; लड़की द्वारा आधे-चाटकर परित्यक्त लड़के! मरो, तुम मरो
    कावित्त का! लहरों को चीरती शार्क चबा जाति हैं माँस और हड्डियाँ
    कावित्त का! एबी नेगेटिव सूर्य, क्षुद्रांत की गाँठों से
    कावित्त का! अधीर पदचिन्हों मे सहेजे  घुँटी रफ़्तार
    कावित्त का! मल-मूत्र से भरे कारा में नाजुक तीखी-चमक
    कावित्त का! भँवरे के कंटकी पैरों से चिपका सरसों का पराग
    कावित्त का! लावणी-सूखे खेत मे गंदे लंगोट मे लिपटा एक भूखा किसान 
    कावित्त का! लाशखोर गिद्धों के परों पर चिपके सड़ते खून के छींटे
    कावित्त का! नाम द्वेषपूर्ण भीड़ में गुम एक उष्ण शतक 
    कावित्त का! तुम मरो, तुम मरो, तुम मरो, आखिर मरी क्यूँ नहीं तुम?
    कावित्त का! मुँह में तुम्हारे झोंस दी गयी है आग, तुम्हारे मुँह में है आग!
    कावित्त का! तुम मरो, मर जाओ तुम, मर जाओ तुम
    कावित्त का! इसकी तरह नहीं, ना ही उसकी तरह, और उनकी तरह तो बिल्कुल भी नहीं
    कावित्त का! तुलना-हीन  इसकी, उसकी या किसी से भी
    कावित्त का! अवन्तिका, ढूंढने आए थे तुम्हे, आखिर क्यूं नहीं अपने ही साथ ले गए वो!

    प्रेम और नख-तराशी
    टैगोर, 
    ये आपके लिए, 
    एक सौ पचास साल बाद:
    कौन काटा करता था 
    आपके नख, विलायती धरती पर - 
    वो विदेशी लड़की? 
    या वो व्यभिचारिणी?
    आपकी एक भी तस्वीर नहीं है, जिसमें
    कमवयस्क महिलाओं की गोद मे हों आपके हाथ
    जो काट रही हों आपके नाखून; 
    या आपके पैर 
    ओकांपो के घुटने पर?
    शायद, वो लड़कियाँ, 
    जिनके कंधों पर गाँधी रखते थे
    अपनी बाँहें, 
    काटा करती हों उनके नख. 
    आप जानते ही हो, 
    अत्यंत तकलीफ़देह है
    पकी उम्र में खुद के पैरों तक 
    नेल-कटर ले जा पाना  
    ओह, मेरे जैसे मर्द, जो विहीन हैं 
    अल्प-वयस्क लड़कियों के संसर्ग से
    परिचित हैं – 
    बुढ़ापे से प्रेम के विचित्र अनुरोध.
    गप्पी कहते हैं, 
    सुनील गाँगुली ने रखी थी – 
    हर नाखून के लिये अलग
    एक संघर्षरत कव्यित्री. 
    जॊय गोस्वामी की भी
    कुछ ऐसी ही प्रवृत्ती थी; 
    लड़कियाँ आँखें मूँदे उतर जाती थी 
    इस दलदल में.
    मैंने खुद देखा है, 
    शक्ति चट्टोपाध्याय की प्रेमिका को
    चाइबासा के छोटे से कमरे मे, 
    उनके नाखून काटते.
    क्या बिजोया के लिए 
    शरत ने भी ऐसा ही किया था?
    यशोधरा, 
    क्या त्रिनंजन ने कभी 
    काटे तुम्हारे नख?
    सुबोध, क्या तुमने कभी उठाए 
    मल्लिका के पैर
    अपनी गोद मे, 
    और काटे उनके नाखून?
    कवि के पैरों पर बस एक नज़र
    और समझ आ जाएगी तुम्हे 
    उनकी तन्हाई की इन्तेहाँ.
    जिबनानन्द की सोचो; 
    ढूँढ रहे हैं वो
    एक हज़ार साल से, 
    बाणलता को, 
    अपने नाखून कटवाने को. 
    (नोख कटा ओ प्रेम)
    मुम्बई २०१०

    दु:श्चरित्रता
    वे, 
    जो पीटते हैं हमें, 
    मृत्युपर्यन्त, 
    खाप पन्चायत के 
    निर्णय के पश्चात, 
    उन्होंने
    तुम्हे भी नहीं बख्शा, अवन्तिका! 
    हम सड़ी हुई लाशें
    बह रहे हैं हुगली नदी में; 
    आखिर क्या अपराध था हमारा?
    तुम दल-प्रमुख की पत्नी, 
    मैं सिर्फ़ एक बेअदब नाचीज़.
    पिछले ३३ सालों मे 
    साम्यवाद को मिली, 
    अनंतहीन प्रशंषा;
    प्रेमियों को क्या मिला? 
    किनके लाभ के लिये थीं 
    वो ग्रंथें -
    प्रेमियों की 
    सड़ी लाशों के अवशेष, 
    जो भी हैं.
    बदल चुके हैं, 
    कोल्हू के बैल में,
    निकम्मे पार्टी के स्वयंसेवक. 
    बेहतर है, 
    हम घुलकर विलीन हो जाएँ, 
    इन लहरों में,
    और बह जाएं 
    अथाह समन्दर में, 
    एक दूसरे में लिपटे हुए.
    (अमरत्व) कोलकाता २००६

    सैनिटरी नैपकिन
    प्रेम, उस लड़की की तरह है, जिसे
    स्कूल छोड़ देना पड़ता था
    हर माह, साढ़े तीन दिन
    पहनना पड़ता था
    कपड़े में बाँध सूखे घास, 
    और बरसात के दिनों में, 
    चुँकि घास हरी होती है
    तो, कपड़े में राख बाँध,
    ताकि सोख सके 
    मासिक स्राव - 
    और अकेली बैठे, 
    किताबों से दूर.
  • Malay Roychoudhury | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১১:৪৩512176
  • কৃতি ঘোষ-এর জন্য প্রেমের কবিতা – মলয় রায়চৌধুরী
    + প্রিয়জনের কাছে শেয়ার করুন +

    এই সেই গালফোলা যুবতী, যাকে তার বাবা ডাকে ডাবলিউ
    রোদের সঙ্গে ষড় করে যে, আমার ছায়াকে ভাঙেচোরে সে
    সিগ্রেট ফোঁকে বলে চুমু ওর, খাওয়া এক বাসি কার্ড এটিএম
    পিন ওর দুই চোখে মিচকায়, ইস্তিরি করা মোর ভজনা
    আমি ছিনু সতেরোশো শতকে, ও রয়েছে বাইশের কোঠাতে
    যা নিয়েছি ফেরত দেয়া যাবে না, উকুনের মতো চুলে পুষেছি
    মৎস্যবালিকা যার বুকে আঁশ, ও আমার পিন-আপ পোস্টার
    নদী ওর ঘাম ছাড়া বয় না, প্রেমিকেরা কারাগারে বন্ধ
    ফোলাগাল ছুঁই ফেসবুকে রোজ, চুমু খাই সিগ্রেটি ঠোঁটে ওর
    আমার কান দুটো কুমিরের, গিটার বাজিয়ে ডাকে আয় আয়
    ও আমায় নিলামেতে কিনেছে, এক টাকা পঁয়ত্রিশ পয়সায়
    চেন বেঁধে পথেঘাটে নিয়ে ঘোরে, তবু বলে তুতুতুতু আয় আয়
    তুতুতুতু আয় আয় , তুতুতুতু আয় আয় আয় আয়
  • সম্বিৎ | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ১০:০৫512175
  • হুতোর ০৮:২৩-কে ক।
  • b | 14.139.196.16 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৯:৫৫512174
  • টইপত্তরে ক্লিক করলে টইপত্তর, ভাটিয়ালি ,  খেরো, বুবুভা , সবই আসছে। ওটা ফিল্টার করলে ভালো । 
  • একটু দেখুন | 2600:1002:b009:e4c4:99a0:3402:504e:aa3 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৯:৩৮512173
  • এইটে মনে হয় ইচ্ছে করে বিরক্ত করার টেকনিক 
    প্রাপ্তবয়স্ক সুস্থ মানুষের থেকে অনভিপ্রেত, তবে, কে জানে, কার অন্তরকন্দরে 'আমাকে দেখুন' এর কেমন কেমন চেহারা লুকিয়ে থাকে 
  • র২হ | 96.230.209.161 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৮:২৩512172
  • টইয়ের লিস্টে তো একাধিক চমৎকার লেখা দেখছি। ভালো মন্দ সাবজেকটিভ যদিও।
     
  • &/ | 151.141.85.8 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৮:১৭512171
  • যাই হোক, সবাইকে আগাম থ্যাংকসগিভিং শুভেচ্ছা জানিয়ে আমি আবার বিদায় নিলাম চতুর্দশ আবর্তনের জন্য। আপনারা ভালো থাকবেন সবাই। ঃ-)
  • &/ | 151.141.85.8 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৮:১৪512170
  • আগে আগে টইতে ঢুকে ভালো লেখা খুঁজে পেতে তেমন কষ্ট হত না, দু'চার পাতা করে পিছিয়ে গেলেই একটা দুটো করে পাওয়া যেত। এখন শত শত আবর্জনা পার হয়েও ভালো লেখার নাগাল মেলে না। এমনিতেই তো ফেসবুকে হাবিজাবির শেষ নেই, এখানেও যদি সেরকম হয়-
  • &/ | 151.141.85.8 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৮:০২512169
  • অ্যাডমিন, একটু দেখুন, টইপত্তর তো ডাম্পিং গ্রাউন্ড হয়ে গেল ! দিনের পর দিন আজেবাজে সব লেখা ডাম্প করে যাচ্ছে তো যাচ্ছেই।
  • S | 2405:8100:8000:5ca1::6c:f33a | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৭:১০512168
  • হ্যাঁ ঐরকম কিছু ডেটা আছে বটে। 
  • nutun lekhok | 23.108.96.79 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৬:৪০512167
  • likhe bose aachi, pathok koi?? পাঠক নাই 
     
    বাংলায় লিখে পাঠক পাই না। 
     
    গুরুজনে জিগাই এর উপায় ki বলেন ?
     
  • :|: | 174.251.162.15 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৬:২২512166
  • ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০০:৩০: খাসা কবিতা!
  • S | 2405:8100:8000:5ca1::10d:1516 | ২৩ নভেম্বর ২০২২ ০৪:২০512164
  • এই ডেটা টা একটু ডেটেড। আমিও এইটাই জানতাম।
  • মতামত দিন
  • বিষয়বস্তু*:
  • কি, কেন, ইত্যাদি
  • বাজার অর্থনীতির ধরাবাঁধা খাদ্য-খাদক সম্পর্কের বাইরে বেরিয়ে এসে এমন এক আস্তানা বানাব আমরা, যেখানে ক্রমশ: মুছে যাবে লেখক ও পাঠকের বিস্তীর্ণ ব্যবধান। পাঠকই লেখক হবে, মিডিয়ার জগতে থাকবেনা কোন ব্যকরণশিক্ষক, ক্লাসরুমে থাকবেনা মিডিয়ার মাস্টারমশাইয়ের জন্য কোন বিশেষ প্ল্যাটফর্ম। এসব আদৌ হবে কিনা, গুরুচণ্ডালি টিকবে কিনা, সে পরের কথা, কিন্তু দু পা ফেলে দেখতে দোষ কী? ... আরও ...
  • আমাদের কথা
  • আপনি কি কম্পিউটার স্যাভি? সারাদিন মেশিনের সামনে বসে থেকে আপনার ঘাড়ে পিঠে কি স্পন্ডেলাইটিস আর চোখে পুরু অ্যান্টিগ্লেয়ার হাইপাওয়ার চশমা? এন্টার মেরে মেরে ডান হাতের কড়ি আঙুলে কি কড়া পড়ে গেছে? আপনি কি অন্তর্জালের গোলকধাঁধায় পথ হারাইয়াছেন? সাইট থেকে সাইটান্তরে বাঁদরলাফ দিয়ে দিয়ে আপনি কি ক্লান্ত? বিরাট অঙ্কের টেলিফোন বিল কি জীবন থেকে সব সুখ কেড়ে নিচ্ছে? আপনার দুশ্‌চিন্তার দিন শেষ হল। ... আরও ...
  • বুলবুলভাজা
  • এ হল ক্ষমতাহীনের মিডিয়া। গাঁয়ে মানেনা আপনি মোড়ল যখন নিজের ঢাক নিজে পেটায়, তখন তাকেই বলে হরিদাস পালের বুলবুলভাজা। পড়তে থাকুন রোজরোজ। দু-পয়সা দিতে পারেন আপনিও, কারণ ক্ষমতাহীন মানেই অক্ষম নয়। বুলবুলভাজায় বাছাই করা সম্পাদিত লেখা প্রকাশিত হয়। এখানে লেখা দিতে হলে লেখাটি ইমেইল করুন, বা, গুরুচন্ডা৯ ব্লগ (হরিদাস পাল) বা অন্য কোথাও লেখা থাকলে সেই ওয়েব ঠিকানা পাঠান (ইমেইল ঠিকানা পাতার নীচে আছে), অনুমোদিত এবং সম্পাদিত হলে লেখা এখানে প্রকাশিত হবে। ... আরও ...
  • হরিদাস পালেরা
  • এটি একটি খোলা পাতা, যাকে আমরা ব্লগ বলে থাকি। গুরুচন্ডালির সম্পাদকমন্ডলীর হস্তক্ষেপ ছাড়াই, স্বীকৃত ব্যবহারকারীরা এখানে নিজের লেখা লিখতে পারেন। সেটি গুরুচন্ডালি সাইটে দেখা যাবে। খুলে ফেলুন আপনার নিজের বাংলা ব্লগ, হয়ে উঠুন একমেবাদ্বিতীয়ম হরিদাস পাল, এ সুযোগ পাবেন না আর, দেখে যান নিজের চোখে...... আরও ...
  • টইপত্তর
  • নতুন কোনো বই পড়ছেন? সদ্য দেখা কোনো সিনেমা নিয়ে আলোচনার জায়গা খুঁজছেন? নতুন কোনো অ্যালবাম কানে লেগে আছে এখনও? সবাইকে জানান। এখনই। ভালো লাগলে হাত খুলে প্রশংসা করুন। খারাপ লাগলে চুটিয়ে গাল দিন। জ্ঞানের কথা বলার হলে গুরুগম্ভীর প্রবন্ধ ফাঁদুন। হাসুন কাঁদুন তক্কো করুন। স্রেফ এই কারণেই এই সাইটে আছে আমাদের বিভাগ টইপত্তর। ... আরও ...
  • ভাটিয়া৯
  • যে যা খুশি লিখবেন৷ লিখবেন এবং পোস্ট করবেন৷ তৎক্ষণাৎ তা উঠে যাবে এই পাতায়৷ এখানে এডিটিং এর রক্তচক্ষু নেই, সেন্সরশিপের ঝামেলা নেই৷ এখানে কোনো ভান নেই, সাজিয়ে গুছিয়ে লেখা তৈরি করার কোনো ঝকমারি নেই৷ সাজানো বাগান নয়, আসুন তৈরি করি ফুল ফল ও বুনো আগাছায় ভরে থাকা এক নিজস্ব চারণভূমি৷ আসুন, গড়ে তুলি এক আড়ালহীন কমিউনিটি ... আরও ...
গুরুচণ্ডা৯-র সম্পাদিত বিভাগের যে কোনো লেখা অথবা লেখার অংশবিশেষ অন্যত্র প্রকাশ করার আগে গুরুচণ্ডা৯-র লিখিত অনুমতি নেওয়া আবশ্যক। অসম্পাদিত বিভাগের লেখা প্রকাশের সময় গুরুতে প্রকাশের উল্লেখ আমরা পারস্পরিক সৌজন্যের প্রকাশ হিসেবে অনুরোধ করি। যোগাযোগ করুন, লেখা পাঠান এই ঠিকানায় : [email protected]


মে ১৩, ২০১৪ থেকে সাইটটি বার পঠিত